रामायण चौपाई हिंदी अर्थ सहित | Ramayan Chaupai in Hindi
रामायण चौपाई
बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना।
कर बिनु करम करइ बिधि नाना॥
आनन रहित सकल रस भोगी।
बिनु बानी बकता बड़ जोगी॥
कर बिनु करम करइ बिधि नाना॥
आनन रहित सकल रस भोगी।
बिनु बानी बकता बड़ जोगी॥
अर्थ : जो (परमात्मा) बिना पैरों के चलता है, बिना कानों के सुनता है बिना हाथों के नाना प्रकार के कर्म करता है मुख के बिना ही जगत के सारे रसों का आनंद लेता है, और बिना वाणी के सबसे सर्वश्रेष्ठ वक्ता है। हे पार्वती जिनका नाम लेकर मरते हुए प्राणी भी मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं, वह प्रभु रघुश्रेष्ठ और चराचर जगत के स्वामी श्री राम सभी के हृदय की बात जानने वाले हैं।
रामायण चौपाई हिन्दी अर्थ सहित
अब कछु नाथ न चाहिअ मोरें।
दीन दयाल अनुग्रह तोरें॥
फिरती बार मोहि जो देबा।
सो प्रसादु मैं सिर धरि लेबा॥
दीन दयाल अनुग्रह तोरें॥
फिरती बार मोहि जो देबा।
सो प्रसादु मैं सिर धरि लेबा॥
अर्थ : जब प्रभु श्री राम केवट को उतराई देते हैं तब केवट हाथ जोड़कर प्रभु से कहता है: हे नाथ, आज मैंने क्या नहीं पाया, आपकी कृपा से मेरे सारे दोष, दुख समाप्त हो गये। हे दीनदयाल, अब मुझे कुछ नहीं चाहिए, लौटते समय आप जो कुछ भी देंगे मैं उसे प्रसाद समझ सिर चढ़ा लूंगा।
रामायण चौपाई अर्थ सहित
सोइ जानइ जेहि देहु जनाई।
जानत तुम्हहि तुम्हइ होइ जाई॥
तुम्हरिहि कृपाँ तुम्हहि रघुनंदन।
जानहिं भगत भगत उर चंदन॥
जानत तुम्हहि तुम्हइ होइ जाई॥
तुम्हरिहि कृपाँ तुम्हहि रघुनंदन।
जानहिं भगत भगत उर चंदन॥
अर्थ : हे प्रभु! आपको वही जान पाता है जिसे आप जाना देते हैं, और जो आपको जान लेता है, वह आपका ही स्वरूप बन जाता है, अतः हे रघुनंदन! भक्तों के हृदय को शीतल करने वाले चंदन! आपकी कृपा से ही भक्त आपको जान पाते हैं।
रामचरितमानस चौपाई अर्थ सहित
कवन सो काज कठिन जग माहीं।
जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं॥
राम काज लगि तव अवतारा।
सुनतहिं भयउ पर्बताकारा॥
जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं॥
राम काज लगि तव अवतारा।
सुनतहिं भयउ पर्बताकारा॥
अर्थ : जब माँ सीता का पता लगाने के लिए समुद्र को पार करके त्रिकूट पर्वत पर स्थित लंका में जाना था, तब जामवंत जी ने हनुमान जी से कहा- हे पवनसुत हनुमान जी जगत में ऐसा कौन सा कार्य है जिसे आप नहीं कर सकते, संसार का कठिन से कठिन कार्य भी आपके स्मरण मात्र से सरल हो जाता है। ऐसा कहते हुए जामवंत जी ने हनुमान जी को यह स्मरण कराया कि आपका जन्म प्रभु श्री राम के कार्य के लिए हुआ है, ऐसा सुनते ही पवनसुत हनुमान जी पर्वत के आकार के समान विशालकाय (पर्वतों के राजा सुमेरू पर्वत के समान) हो गए।
Ramayan Chaupai
बिनु सत्संग विवेक न होई।
राम कृपा बिनु सुलभ न सोई॥
सठ सुधरहिं सत्संगति पाई।
पारस परस कुघात सुहाई॥
राम कृपा बिनु सुलभ न सोई॥
सठ सुधरहिं सत्संगति पाई।
पारस परस कुघात सुहाई॥
अर्थ : सत्संग के बिना विवेक नहीं होता और राम जी की कृपा के बिना वह सत्संग नहीं मिलता, सत्संगति आनंद और कल्याण की जड़ है। दुष्ट भी सत्संगति पाकर सुधर जाते हैं जैसे पारस के स्पर्श से लोहा सुंदर सोना बन जाता है।
रामायण चौपाई
जा पर कृपा राम की होई।
ता पर कृपा करहिं सब कोई॥
जिनके कपट, दम्भ नहिं माया।
तिनके ह्रदय बसहु रघुराया॥
ता पर कृपा करहिं सब कोई॥
जिनके कपट, दम्भ नहिं माया।
तिनके ह्रदय बसहु रघुराया॥
अर्थ : जिन पर राम की कृपा होती है, उन्हें कोई सांसारिक दुःख छू तक नहीं सकता। परमात्मा जिस पर कृपा करते है उस पर तो सभी की कृपा अपने आप होने लगती है । और जिनके अंदर कपट, दम्भ (पाखंड) और माया नहीं होती, उन्हीं के हृदय में रघुपति बसते हैं अर्थात उन्हीं पर प्रभु की कृपा होती है।
रामायण की चौपाई अर्थ सहित
कहेहु तात अस मोर प्रनामा।
सब प्रकार प्रभु पूरनकामा॥
दीन दयाल बिरिदु संभारी।
हरहु नाथ मम संकट भारी॥
सब प्रकार प्रभु पूरनकामा॥
दीन दयाल बिरिदु संभारी।
हरहु नाथ मम संकट भारी॥
अर्थ : हे तात ! मेरा प्रणाम और आपसे निवेदन है - हे प्रभु! यद्यपि आप सब प्रकार से पूर्ण काम हैं (आपको किसी प्रकार की कामना नहीं है), तथापि दीन-दुःखियों पर दया करना आपका विरद (प्रकृति) है, अतः हे नाथ ! आप मेरे भारी संकट को हर लीजिए (मेरे सारे कष्टों को दूर कीजिए)॥
रामायण चौपाई इन हिंदी
हरि अनंत हरि कथा अनंता।
कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता॥
रामचंद्र के चरित सुहाए।
कलप कोटि लगि जाहिं न गाए॥
कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता॥
रामचंद्र के चरित सुहाए।
कलप कोटि लगि जाहिं न गाए॥
अर्थ : हरि अनंत हैं (उनका कोई पार नहीं पा सकता) और उनकी कथा भी अनंत है। सब संत लोग उसे बहुत प्रकार से कहते-सुनते हैं। रामचंद्र के सुंदर चरित्र करोड़ों कल्पों में भी गाए नहीं जा सकते।
रामायण चौपाई सुंदरकांड
जासु नाम जपि सुनहु भवानी।
भव बंधन काटहिं नर ग्यानी॥
तासु दूत कि बंध तरु आवा।
प्रभु कारज लगि कपिहिं बँधावा॥
भव बंधन काटहिं नर ग्यानी॥
तासु दूत कि बंध तरु आवा।
प्रभु कारज लगि कपिहिं बँधावा॥
अर्थ : (शिवजी कहते हैं) हे भवानी सुनो - जिनका नाम जपकर ज्ञानी मनुष्य संसार रूपी जन्म-मरण के बंधन को काट डालते हैं, क्या उनका दूत किसी बंधन में बंध सकता है? लेकिन प्रभु के कार्य के लिए हनुमान जी ने स्वयं को शत्रु के हाथ से बंधवा लिया।
रामायण चौपाई लिरिक्स
एहि महँ रघुपति नाम उदारा।
अति पावन पुरान श्रुति सारा॥
मंगल भवन अमंगल हारी।
उमा सहित जेहि जपत पुरारी॥
अति पावन पुरान श्रुति सारा॥
मंगल भवन अमंगल हारी।
उमा सहित जेहि जपत पुरारी॥
अर्थ : रामचरितमानस में श्री रघुनाथजी का नाम उदार है, जो अत्यन्त पवित्र है, वेद-पुराणों का सार है, मंगल (कल्याण) करने वाला और अमंगल को हरने वाला है, जिसे पार्वती जी सहित स्वयं भगवान शिव सदा जपा करते हैं।
रामायण की चौपाई
होइहि सोइ जो राम रचि राखा।
को करि तर्क बढ़ावै साखा॥
अस कहि लगे जपन हरिनामा।
गईं सती जहँ प्रभु सुखधामा॥
को करि तर्क बढ़ावै साखा॥
अस कहि लगे जपन हरिनामा।
गईं सती जहँ प्रभु सुखधामा॥
अर्थ : जब रघुनाथ मनुष्य के भांति विरह से व्याकुल होकर लक्ष्मण के साथ वन में सीता को खोज रहे थे, तभी शिव जी ने इस अवसर पर प्रभु श्री राम को देखा, उनके हृदय में भारी आनंद उत्पन्न हुआ और उन्हें शीश झुका कर नमन किया, परंतु अवसर ठीक न जानकर परिचय नहीं किया। जब यह बात शिव जी ने सती को बताई, तब उनके मन में भारी आशंका उत्पन्न हुई, यह जानते हुए भी शिव जी के वचन झूठ नहीं हो सकते। सती सोचने लगी, क्या ज्ञान के भंडार, माया रहित भगवान विष्णु मनुष्य शरीर धारण करके अज्ञानी की तरह स्त्री को खोजेंगे? शिवजी से आज्ञा लेकर वह प्रभु श्री राम की परीक्षा लेने चलीं। यह सब देखकर शिव जी काफी व्याकुल हो रहे थे। तब उन्होंने अपने मन को समझाते हुए में कहा: जो कुछ राम ने रच रखा है, वही होगा। तर्क करके कौन शाखा (विस्तार) बढ़ावे। अर्थात इस विषय में तर्क करने से कोई लाभ नहीं। (मन में) ऐसा कहकर भगवान शिव हरि का नाम जपने लगे और सती वहाँ गईं जहाँ सुख के धाम प्रभु राम थे।
Ramayan Chaupai in Hindi
करमनास जल सुरसरि परई,
तेहि काे कहहु सीस नहिं धरई।
उलटा नाम जपत जग जाना,
बालमीकि भये ब्रह्म समाना।।
तेहि काे कहहु सीस नहिं धरई।
उलटा नाम जपत जग जाना,
बालमीकि भये ब्रह्म समाना।।
अर्थ : कर्मनास का जल (अशुद्ध से अशुद्ध जल भी) यदि गंगा में पड़ जाए तो कहो उसे कौन नहीं सिर पर रखता है? अर्थात अशुद्ध जल भी गंगा के समान पवित्र हो जाता है। सारे संसार को विदित है की उल्टा नाम का जाप करके वाल्मीकि जी ब्रह्म के समान हो गए।
Ramayan Ki Chaupai
अनुचित उचित काज कछु होई,
समुझि करिय भल कह सब कोई।
सहसा करि पाछे पछिताहीं,
कहहिं बेद बुध ते बुध नाहीं।।
समुझि करिय भल कह सब कोई।
सहसा करि पाछे पछिताहीं,
कहहिं बेद बुध ते बुध नाहीं।।
अर्थ : किसी भी कार्य का परिणाम उचित होगा या अनुचित, यह जानकर करना चाहिए, उसी को सभी लोग भला कहते हैं। जो बिना विचारे काम करते हैं वे बाद में पछताते हैं, उनको वेद और विद्वान कोई भी बुद्धिमान नहीं कहता।
रामायण की सर्वश्रेष्ठ चौपाई
सुमति कुमति सब कें उर रहहीं।
नाथ पुरान निगम अस कहहीं॥
जहाँ सुमति तहँ संपति नाना।
जहाँ कुमति तहँ बिपति निदाना॥
नाथ पुरान निगम अस कहहीं॥
जहाँ सुमति तहँ संपति नाना।
जहाँ कुमति तहँ बिपति निदाना॥
अर्थ : हे नाथ ! पुराण और वेद ऐसा कहते हैं कि सुबुद्धि (अच्छी बुद्धि) और कुबुद्धि (खोटी बुद्धि) सबके हृदय में रहती है, जहाँ सुबुद्धि है, वहाँ नाना प्रकार की संपदाएँ (सुख और समृद्धि) रहती हैं और जहाँ कुबुद्धि है वहाँ विभिन्न प्रकार की विपत्ति (दुःख) का वाश होता है।
Ramayan Chaupai Lyrics
करम प्रधान बिस्व करि राखा।
जो जस करइ सो तस फलु चाखा॥
जो जस करइ सो तस फलु चाखा॥
अर्थ : भगवान ने संसार में कर्म को प्रधान कर रखा है जो व्यक्ति इस संसार में जैसा कर्म करता है वह इस धरती पर वैसा ही फल भोगता है। इसमें कोई हेरा-फेरी नहीं होती, यह बिल्कुल सीधा और सरल नियम है। यदि व्यक्ति सत्कर्म (अच्छे कर्म) करता है तो उसे शांति और समृद्धि प्राप्त होती है परंतु यदि व्यक्ति दुष्कर्म (बुरे कर्म) करता है तो वह इसी धरती पर उसका दंड भी भोगता है (अर्थात दुःख और विपत्तियों में पड़ता है)। इसके अतिरिक्त जो व्यक्ति कर्महीन होता है अर्थात कोई कर्म नहीं करता, उसे विभिन्न प्रकार के पदार्थों से परिपूर्ण इस धरती पर भी कुछ प्राप्त नहीं होता। इस गंतव्य को तुलसीदास जी लिखते हैं:
सकल पदारथ एहि जग माहीं।
करमहीन नर पावत नाहीं।
सकल पदारथ एहि जग माहीं।
करमहीन नर पावत नाहीं।
Ramayan Chaupai with Meaning
पर हित सरिस धर्म नहिं भाई।
पर पीड़ा सम नहिं अधमाई॥
निर्नय सकल पुरान बेद कर।
कहेउँ तात जानहिं कोबिद नर॥
पर पीड़ा सम नहिं अधमाई॥
निर्नय सकल पुरान बेद कर।
कहेउँ तात जानहिं कोबिद नर॥
अर्थ : तुलसीदास जी कहते हैं, हे भाई! दूसरों की भलाई के समान कोई धर्म नहीं है और दूसरों को दुःख पहुँचाने के समान इस संसार में कोई नीचता (पाप) नहीं है। सारे वेदों और पुराणों का यह सार मैंने तुमसे कहा है इस बात को ज्ञानी लोग भली-भांति जानते हैं।
Most Popular Ramayan Chaupai
धीरज धर्म मित्र अरु नारी।
आपद काल परिखिअहिं चारी॥
बृद्ध रोगबस जड़ धनहीना।
अंध बधिर क्रोधी अति दीना॥
आपद काल परिखिअहिं चारी॥
बृद्ध रोगबस जड़ धनहीना।
अंध बधिर क्रोधी अति दीना॥
अर्थ : धैर्य, धर्म, मित्र और स्त्री- इन चारों की सही परख (परीक्षा) विपत्ति के समय ही होती है। वृद्ध, रोगी, मूर्ख, निर्धन, अंधा, बहरा, क्रोधी और अत्यन्त दीन- ऐसे भी पति का अपमान करने से स्त्री यमपुर में भाँति-भाँति के दुःख पाती है। शरीर, वचन और मन से पति के चरणों में प्रेम करना ही स्त्री का एकमात्र धर्म है।
Popular Ramayan Chaupai in Hindi
तौ भगवानु सकल उर बासी।
करिहि मोहि रघुबर कै दासी॥
जेहि कें जेहि पर सत्य सनेहू।
सो तेहि मिलइ न कछु संदेहू॥
करिहि मोहि रघुबर कै दासी॥
जेहि कें जेहि पर सत्य सनेहू।
सो तेहि मिलइ न कछु संदेहू॥
अर्थ : स्वयम्बर के समय सीता जी प्रभु श्रीराम की प्राप्ति हेतु भगवन से यह प्रार्थना करते हुए कह रही हैं: सबके हृदय में निवास करने वाले भगवान (महेश-भवानी और गणों के नायक, वर देने वाले देवता गणेश) मुझे रघुश्रेष्ठ राम की दासी अवश्य बनाएँगे। क्योंकि जिसका जिस पर सच्चा स्नेह होता है, वह उसे मिलता ही है, इसमें कुछ भी संदेह नहीं है।
Ramayan Chaupai Hindi
झूठेहुँ हमहि दोषु जनि देहू।
दुइ कै चारि मागि मकु लेहू॥
रघुकुल रीति सदा चलि आई।
प्रान जाहुँ परु बचनु न जाई॥
दुइ कै चारि मागि मकु लेहू॥
रघुकुल रीति सदा चलि आई।
प्रान जाहुँ परु बचनु न जाई॥
अर्थ : कैकई राजा दशरथ को झूठ- मुठ का लल्छनन लगते हुए कह रही हैं : आप दिए हुए वचन भूल जाते हैं। राजा दशरथ कैकई से कहते हैं: मुझे झूठ-मूठ दोष मत दो। चाहे दो के बदले चार वरदान माँग लो। रघुकुल में सदा से यह रीति चली आई है कि प्राण भले ही चले जाएँ, पर वचन नहीं जाता॥
Ramayan ki Chaupai
सीता राम चरण रति मोरे,
अनुदिन बढ़ऊ अनुग्रह तोरे।
जेहि बिधि नाथ होइ हित मोरा।
करहु सो बेगि दास मैं तोरा॥
सीता राम राम राम सीता राम राम राम
सीता राम राम राम सीता राम राम राम
अनुदिन बढ़ऊ अनुग्रह तोरे।
जेहि बिधि नाथ होइ हित मोरा।
करहु सो बेगि दास मैं तोरा॥
सीता राम राम राम सीता राम राम राम
सीता राम राम राम सीता राम राम राम
अर्थ : हे करुणानिधान! मैं चाहता हूं कि आपके चरणों के प्रति मेरा यह प्रेम दिन-प्रतिदिन (निरंतर) बढ़ता रहे। हे नाथ! मेरी आपसे यही प्रार्थना है कि जिस भी प्रकार से मेरा हित (कल्याण) हो, आप वही कार्य करिए।
नोट: यह दोनों चौपाइयां श्रीरामचरितमानस के अलग-अलग जगहों से ली गईं हैं, परंतु इन दोनों को मिलाकर गाने का आनंद ही कुछ और है। इसे पूज्य श्री राजन जी महाराज अपने शब्दों में इस प्रकार गाते हैं:
Shri Ram Chaupai
नहिं दरिद्र सम दु:ख जग माहीं।
संत मिलन सम सुख जग नाहीं॥
पर उपकार बचन मन काया।
संत सहज सुभाउ खगराया॥
संत मिलन सम सुख जग नाहीं॥
पर उपकार बचन मन काया।
संत सहज सुभाउ खगराया॥
अर्थ : इस जगत में दरिद्रता के समान दूसरा कोई दुःख नहीं है, तथा संतों के मिलने के समान जगत् में कोई और सुख नहीं है। और हे पक्षीराज! मन, वचन और शरीर से दूसरों का भला करना संतों का सहज स्वभाव है।
रामायण चौपाई हिंदी में
सो धन धन्य प्रथम गति जाकी।
धन्य पुन्य रत मति सोई पाकी॥
धन्य घरी सोई जब सतसंगा।
धन्य जन्म द्विज भगति अभंगा॥
धन्य पुन्य रत मति सोई पाकी॥
धन्य घरी सोई जब सतसंगा।
धन्य जन्म द्विज भगति अभंगा॥
अर्थ : वह धन धन्य है, जिसकी पहली गति होती है (जो दान देने में व्यय होता है) वही बुद्धि धन्य है, जो पुण्य में लगी हुई है। वही घड़ी धन्य है जब सत्संग हो और वही जन्म धन्य है जिसमें ब्राह्मण की अखंड भक्ति हो। (धन की तीन गतियां होती हैं - दान, भोग और नाश। दान उत्तम है, भोग मध्यम है और नाश नीच गति है। जो पुरुष ना दान करता है, ना भोगता है, उसके धन की तीसरी गति होती है।)
Ramayan Chaupai in Hindi
एहि तन कर फल बिषय न भाई।
स्वर्गउ स्वल्प अंत दुखदाई॥
नर तनु पाइ बिषयँ मन देहीं।
पलटि सुधा ते सठ बिष लेहीं॥
स्वर्गउ स्वल्प अंत दुखदाई॥
नर तनु पाइ बिषयँ मन देहीं।
पलटि सुधा ते सठ बिष लेहीं॥
अर्थ : हे भाई! इस शरीर के प्राप्त होने का फल विषयभोग नहीं है (इस जगत् के भोगों की तो बात ही क्या) स्वर्ग का भोग भी बहुत थोड़ा है, और अंत में दुःख देने वाला है। अतः जो लोग मनुष्य शरीर पाकर विषयों में मन लगा देते हैं, वे मूर्ख अमृत को बदलकर विष पी लेते हैं। मन को विषयो के प्रति आसक्त करना मृत्यु को वरन करने के सामान है। (अतः इस दुर्लभ शरीर को सत्कर्म में लगाना चाहिए।)
Ramcharitmanas Chaupai
ह्रदय बिचारति बारहिं बारा,
कवन भाँति लंकापति मारा।
अति सुकुमार जुगल मम बारे,
निशाचर सुभट महाबल भारे।।
कवन भाँति लंकापति मारा।
अति सुकुमार जुगल मम बारे,
निशाचर सुभट महाबल भारे।।
अर्थ : जब श्रीरामचंद्रजी रावण का वध करके वापस अयोध्या लौटते हैं, तब माता कौशल्या अपने हृदय में बार-बार यह विचार कर रही हैं कि इन्होंने रावण को कैसे मारा होगा। मेरे दोनों बालक तो अत्यंत सुकुमार हैं और राक्षस योद्धा तो महा बलवान थे। इस सबके अतिरिक्त लक्ष्मण और सीता सहित प्रभु राम जी को देखकर मन ही मन परमानंद में मग्न हो रही हैं।
Ramcharitmanas Ki Chaupaiyan
गुर बिनु भव निध तरइ न कोई।
जौं बिरंचि संकर सम होई॥
जौं बिरंचि संकर सम होई॥
अर्थ : गुरु के बिना कोई भी भवसागर पार नहीं कर सकता, चाहे वह ब्रह्मा जी और शंकर जी के समान ही क्यों ना हो। गुरु का हमारे जीवन में बहुत बड़ा महत्व है। गुरु के बिना ज्ञान की प्राप्ति संभव नहीं है और बिना ज्ञान के परमात्मा की प्राप्ति नहीं हो सकती।
Chaupai Ramcharitmanas
भक्ति हीन गुण सब सुख कैसे,
लवण बिना बहु व्यंजन जैसे।
भक्ति हीन सुख कवने काजा,
अस बिचारि बोलेऊं खगराजा॥
लवण बिना बहु व्यंजन जैसे।
भक्ति हीन सुख कवने काजा,
अस बिचारि बोलेऊं खगराजा॥
अर्थ : भक्ति के बिना गुण और सब सुख ऐसे फीके हैं, जैसे नमक के बिना विभिन्न प्रकार के व्यंजन। भजन विहीन सुख किस काम का। यह विचार कर पक्षीराज कागभुशुण्डि जी बोले- (यदि आप मुझ पर प्रसन्न हो तो हे शरणागतों के हितकारी, कृपा के सागर और सुख के धाम कृपा करके मुझे अपनी भक्ति प्रदान कीजिए।)
रामायण चौपाई अर्थ सहित
धन्य देश सो जहं सुरसरी।
धन्य नारी पतिव्रत अनुसारी॥
धन्य सो भूपु नीति जो करई।
धन्य सो द्विज निज धर्म न टरई॥
धन्य नारी पतिव्रत अनुसारी॥
धन्य सो भूपु नीति जो करई।
धन्य सो द्विज निज धर्म न टरई॥
अर्थ : वह देश धन्य है, जहां गंगा जी बहती हैं। वह स्त्री धन्य है जो पतिव्रत धर्म का पालन करती है। वह राजा धन्य है जो न्याय करता है और वह ब्राह्मण धन्य है जो अपने धर्म से नहीं डिगता है।
Ramayan ke Dohe Chaupai
एक पिता के बिपुल कुमारा,
होहिं पृथक गुन शीला अचारा।
कोउ पंडित कोउ तापस ज्ञाता,
कोउ धनवंत वीर कोउ दाता॥
होहिं पृथक गुन शीला अचारा।
कोउ पंडित कोउ तापस ज्ञाता,
कोउ धनवंत वीर कोउ दाता॥
अर्थ : प्रभु श्री रामचंद्र जी बोले- एक ही पिता के बहुत से पुत्र होते हैं परंतु गुण और सील तथा आचरण में भिन्न भिन्न होते हैं। उनमें कोई पंडित, कोई तपस्वी, कोई ज्ञानी, कोई धनवान, कोई वीर और कोई दानी होता है।
Ramcharitmanas Chaupai in Hindi
कोउ सर्वज्ञ धर्मरत कोई,
सब पर पितहिं प्रीति सम होई।
कोउ पितु भक्त बचन मन कर्मा,
सपनेहुं जान न दूसर धर्मा॥
सब पर पितहिं प्रीति सम होई।
कोउ पितु भक्त बचन मन कर्मा,
सपनेहुं जान न दूसर धर्मा॥
अर्थ : कोई सर्वज्ञ और कोई धर्म में तत्पर होता है, परंतु पिता की प्रीति सब पर समान होती है। यदि कोई पुत्र मन वचन और कर्म से पिता का भक्त है और वह दूसरा धर्म स्वप्न में भी नहीं जानता तो-
Ramayan ki Chaupai
सो सूत प्रिय पितु प्रान समाना,
यद्यपि सो सब भांति अज्ञाना।
एहि विधि जीव चराचर जेते,
त्रिजग देव नर असुर समेते॥
यद्यपि सो सब भांति अज्ञाना।
एहि विधि जीव चराचर जेते,
त्रिजग देव नर असुर समेते॥
अर्थ : वह पुत्र पिता को प्राणों के समान प्रिय होता है, भले ही वह सब तरह से मूर्ख ही क्यों ना हो। प्रभु श्री रामचंद्र जी कह रहे है- ठीक इसी प्रकार से तीनों लोकों में देवता, मनुष्य और दैत्यों के सहित जड़ चेतन जितने भी जीव हैं। (उन सभी पर मेरी बराबर कृपा बनी रहती है। )
Ramayan Chaupai in Hindi
अखिल विश्व यह मम उपजाया,
सब पर मोहिं बराबर दाया।
तिन्ह महं जो परिहरि मद माया,
भजहिं मोहिं मन वचन अरु काया॥
सब पर मोहिं बराबर दाया।
तिन्ह महं जो परिहरि मद माया,
भजहिं मोहिं मन वचन अरु काया॥
अर्थ : यह अखिल संसार मेरा उत्पन्न किया हुआ है और सब पर मेरी बराबर दया रहती है, उनमें जो भी जीव अभिमान और माया छोड़कर मन, वचन और शरीर से मुझे भजते हैं, वे सेवक मुझे प्राणों के समान प्यारे हैं।
रामायण चौपाई अर्थ सहित हिंदी में
संत सहहिं दुख परहित लागी,
पर दुख हेतु असंत अभागी।
भूर्ज तरु सम संत कृपाला,
परहित निति सह बिपति बिसाला॥
पर दुख हेतु असंत अभागी।
भूर्ज तरु सम संत कृपाला,
परहित निति सह बिपति बिसाला॥
अर्थ : संत दूसरों की भलाई के लिए दुख सहते हैं अभागे दुर्जन दूसरों को दुख देने के लिए स्वयं कष्ट सहते हैं। संत जन भोजपत्र के समान हैं जो दूसरों के कल्याण के लिए नित्य विपत्ति सहते हैं।( और दुष्टजन पराई संपत्ति नाश करने हेतु स्वयं नष्ट हो जाते हैं, जैसे ओले खेतों को नाश करके स्वयं नष्ट हो जाते हैं।)
Ramayan Chaupai with Hindi Meaning
श्याम गात राजीव बिलोचन,
दीन बंधु प्रणतारति मोचन।
अनुज जानकी सहित निरंतर,
बसहु राम नृप मम उर अन्दर॥
दीन बंधु प्रणतारति मोचन।
अनुज जानकी सहित निरंतर,
बसहु राम नृप मम उर अन्दर॥
अर्थ : तुलसीदास जी कहते हैं कि हे श्रीरामचंद्रजी ! आप श्यामल शरीर, कमल के समान नेत्र वाले, दीनबंधु और संकट को हरने वाले हैं। हे राजा रामचंद्रजी आप निरंतर लक्ष्मण और सीता सहित मेरे हृदय में निवास कीजिए।
Chaupai Ramayan ki
अगुण सगुण गुण मंदिर सुंदर,
भ्रम तम प्रबल प्रताप दिवाकर।
काम क्रोध मद गज पंचानन,
बसहु निरंतर जन मन कानन।।
भ्रम तम प्रबल प्रताप दिवाकर।
काम क्रोध मद गज पंचानन,
बसहु निरंतर जन मन कानन।।
अर्थ : तुलसीदास जी कहते हैं कि हे गुणों के मंदिर ! आप सगुण और निर्गुण दोनों है। आपका प्रबल प्रताप सूर्य के प्रकाश के समान काम, क्रोध, मद और अज्ञानरूपी अंधकार का नाश करने वाले हैं। आप सर्वदा ही अपने भक्तजनों के मनरूपी वन में निवास करते हैं।
रामायण दोहा:
मोहमूल बहु सूल प्रद त्यागहु तुम अभिमान।
भजहु राम रघुनायक कृपा सिंधु भगवान॥
भजहु राम रघुनायक कृपा सिंधु भगवान॥
अर्थ : मोह ही जिनका मूल है, ऐसे (अज्ञानजनित), बहुत पीड़ा देने वाले, तमरूप अभिमान का त्याग कर दो और रघुकुल के स्वामी, कृपा के समुद्र भगवान श्री रामचंद्रजी का भजन करो।
-रामचरितमानस
यह रामायण चौपाई Ramayan Chaupai आपको कैसे लगे, हमें कमेंट करके बताएं तथा इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें ताकि इससे आपके मित्र भी श्रीरामचरितमानास रूपी अमृत (Shri Ramcharitmanas) का आनन्द उठा सकें।
यदि कोई और रामायण चौपाई जो आपको प्रेरित करती हो और आप इस लेख में जोड़ना चाहते है जिससे और लोग भी उससे प्रेरित हो सके तो आप उसे email: motivatorindia24@gmail.com पर भेजें। हम आपके सहयोग को इस वेबसाइट के माध्यम से लोगों तक पहुंचाएंगे।
धन्यवाद
यदि कोई और रामायण चौपाई जो आपको प्रेरित करती हो और आप इस लेख में जोड़ना चाहते है जिससे और लोग भी उससे प्रेरित हो सके तो आप उसे email: motivatorindia24@gmail.com पर भेजें। हम आपके सहयोग को इस वेबसाइट के माध्यम से लोगों तक पहुंचाएंगे।
धन्यवाद
100 Comments
Very good
ReplyDeleteThank You Sir
DeleteBahu hi badhiya hai
DeleteJai shree ram 🌺🌺🌺🌺🌺
Deleteअति सुन्दर जय श्री राम पवन सुत हनुमान की जय
Deleteअति सुन्दर जय श्री राम पवन सुत हनुमान की जय
DeleteJay ho
ReplyDeleteJay shree ram🙏
ReplyDeletejay shree ram
Deleteजय सिया राम
ReplyDeleteजय सियाराम!
ReplyDeleteदिन दयाल बिरूदु सम्भारी हरहु नाथ मम् संकट भारी!
बहुत सुंदर
ReplyDeleteजय श्री राम
જય શ્રી રામ
ReplyDeleteJay Shree Ram
ReplyDeleteजय श्री राम 🙏🚩
ReplyDeleteजय श्री राम
DeleteJay Shri ram
ReplyDeleteBahot abhar Aap Ka jai Shri ram
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteजय जय सीता राम जय हो हनुमान जी महाराज
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर चौपाइयों का आपने चयन किया है
ReplyDeleteThank You Dear
DeleteJai Shree ram
ReplyDeleteजय जय सियाराम
ReplyDeleteमहाभारत में बर्बरीक के बारे में भी कोई संक्षिप्त जानकारी दीजिये ।
ReplyDeleteकिसी को पता हो तो बताये जरूर 🙏
जय श्री राम 🙏🙏🙏
श्री खाटूश्याम जी ही बर्बरीक हें और अधिक जानकारी चाहिए तो 9303968612 पर कॉल करे
Deleteजय जय सियाराम जय जय हनुमान
ReplyDeleteअति सुन्दर जय श्री राम
ReplyDeleteअति सुन्दर जय श्री राम
ReplyDeleteश्री राम जय राम जय जय राम
ReplyDeleteजय श्री राम
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर। 😊🙏
ReplyDeleteNamaste ji
Deleteजय जय श्री सीताराम 🙏🙏अति सुन्दर मानस चोपाई !गुरु विन भव निधि तरई न कोई जो
ReplyDeleteबिरंचि शंकर सम होई !!
हमने आपके चौपाई (सहयोग) को इस पोस्ट में प्रेषित किया। यह चौपाई शेयर करने के लिए आपका सहृदय धन्यवाद।
Deleteजय श्री राम
जय श्री राम🚩🚩🚩
Delete🙏🏻🌹🙏🏻 jai sri RAM 🙏🏻🌹🙏🏻 Aachha prayaas hai continue karo 🙏🏻🌹🙏🏻
ReplyDeleteJai ram
ReplyDeleteJai shree ram🙏
ReplyDeleteATI Sundar Jay Shri Ram badi Bhagya
ReplyDeleteजय सियाराम, बहुत सुन्दर प्रिय है, पूरी रामायण संस्कृत हिंदी अर्थ सहित,🙏🚩🚩
ReplyDeleteJay Shree ram
ReplyDeleteबहुत बढ़िया 🙏🙏 जय श्री राम
ReplyDeleteBahut hi sundar Ramayan chaupai Hindi Arth sahit likha gya hai
ReplyDeleteBahut achha laga
Jai Shree Ram
Jis tarah ram ji ke katha ka waranan koi ant nahi hai thik usi tarah ke Chanel ke madhyam se hume bahut zan part hua koti koti pranam ji
ReplyDeleteधन्यवाद प्रिय
Deleteबहुत बहुत ही अच्छी लगी चौपाई जय श्री राम
ReplyDeleteJay Shree Ram
ReplyDeleteSampund kaise dawnload hogi
ReplyDeleteअत्यंत सुखमय लगा पढ़कर
ReplyDeleteJai Shree Ram
ReplyDeleteMujhe dohu
ReplyDeleteJay shree 🙏🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteBahumuly.....aage bhi apne kam ko isi khubsurati k sath jari rakhe
ReplyDeleteJay shree ram
ReplyDeleteBahut hi sunder chaupai hai. Dhanyawad
ReplyDeleteAti sundar. Subha subha pdne s aapka din shubh ho jaaye.. Inko pdke or apne mn m dharan krke. Man vachan or karam s sirf prabhu ka bhajan kro or dust logo ka sath chhodke gyan k raaste p chalo.
ReplyDeleteअति सुंदर चौपाई हैं
ReplyDeleteJai shree ram
ReplyDeleteमंगल भवानी अमंगल हारी जय जय श्री राम
ReplyDeleteजय श्री राम
ReplyDeleteजय श्री राम..............................................................
Jay Shri Ram 🙏
ReplyDeleteJai Shri Ram
ReplyDeleteBahut bhadiya
Anand hi Anand
Jai shri Ram
ReplyDeleteJai Sri Ram
ReplyDeleteभगवान की यह श्री राम की यह चौपाई गाने में जितना मजा आता है संसार की किसी वस्तु में किसी बात में भी मजा नहीं है हमें पूरे प्रेम से नहा धोकर बिल्कुल शुद्ध होकर स्वच्छ मनसे बड़े लय में सुर में चौपाई गानी चाहिए 👈👈👈 अगर आप युवा अवस्था से ऊपर अवस्था तक भगवान की रामायण की चौपाई अभी गाते हैं उनमें आस्था आपकी अटूट है तो अभी आपका मृत्यु के समय इस संसार से बेड़ा पार हो जाएगा बोली भगवान श्री राजा रामचंद्र की जय 🙏🙏🙏
ReplyDeleteBahut Sundar
ReplyDeleteUttam sir adbhud
ReplyDeleteरामायण चौपाई से बहुत कुछ सिखने को मिला 🚩जय श्री राम🚩
ReplyDelete🙏जय श्री राम🙏
ReplyDelete👍🏻🙏
ReplyDeleteJAY SREE RAM
ReplyDeleteJai Shri Ram.... Jagat ki mool sachai jisko dharan ke hum sab dhan ho jayege.
ReplyDeleteJai shree Ram
ReplyDeleteबहुत सुंदर जय श्री राम
ReplyDeleteJay shiya ram🙏🙏🙏
ReplyDeleteजय श्री राम
ReplyDeleteJai shri ram ❤️💪
ReplyDeleteJai shree Ram
ReplyDeleteJay.shri.ram
Deletejay shri ram
ReplyDeleteHanuman Chalisa Hindi Lyrics PDF
https://bhaktibhajanlyrics.com/hanuman-chalisa-hindi-lyrics/
JAI SIYARAM
ReplyDeleteLog aaj kal photo khicte h
ReplyDeleteAre paaglo.... bhagwan ka chitra ni charitra utaro
Jai shree rammmmm
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर चौपाई।
ReplyDeleteJai shree sitaram 🚩🙏
Deleteजय सियाराम।
ReplyDeleteकवन सो काज कठिन जग माहीं।
ReplyDeleteजो नहिं होइ तात तुम्ह पाहिं॥
अति मन भावक चोपाई। सीता राम 🙏🏻
जय सियाराम राम 🚩🙏🏻
Jai sri ram
ReplyDeleteJai sri Ram
ReplyDeleteJay shree tam
ReplyDeleteBahut achchha laga jai shree ram
ReplyDeleteJay shree ram
ReplyDeleteRam ram
ReplyDeleteJai shri ram 🙏
ReplyDeleteअमृत केसमान
ReplyDeleteAanand dayk Jai shree Ram
ReplyDeleteरोज पढ कर मनन करता ह
ReplyDeleteBahut accha man ko tript kar diya Jay Shri Ram Sita Ram Sita Ram
ReplyDeletesita ram ram ram
ReplyDeletejai ho
kar bhala so bhala